केंद्र द्वारा जारी कोचिंग सेंटर विनियमन 2024 के लिए प्रस्तावित दिशानिर्देश सुझाव देते हैं कि 16 वर्ष से कम उम्र के छात्रों को कोचिंग सेंटरों में नामांकित नहीं किया जाना चाहिए. दिशानिर्देश यह भी सुझाव देते हैं कि कोचिंग सेंटरों को माता-पिता और छात्रों से भ्रामक वादे या रैंक की गारंटी नहीं देनी चाहिए.
अक्सर हम सातवीं-आठवीं के बच्चे के अभिभावक से सुनते हैं कि मेरे बच्चे को देश की टॉप कोचिंग ने चुन लिया है. उसने टेस्ट दिया तो उसका नाम आ गया, इसीलिए वो उसकी फीस में भी छूट देंगे. अब हमें इतने लाख के बजाय इतने लाख फीस देनी होगी. शिक्षा के क्षेत्र में दो दशक से ज्यादा समय से काम कर रहे लोग कहते हैं कि अब बच्चे कस्टमर से ज्यादा कुछ नहीं रहे. बच्चों को सातवीं-आठवीं कक्षा से ही कोचिंग मंडी में किसी प्रोजेक्ट की तरह छोड़ दिया जाता है जहां कोचिंग संस्थान ही सर्वेसर्वा होते हैं.
अब जब ये कोचिंग इंडस्ट्री इतनी ग्रो हो गई कि यहां छात्र एक कस्टमर से ज्यादा कुछ नहीं रहा. इसके नफे नुकसान का हिसाब लगाया गया तो सरकार ने इनको एक दायरे में बांधने की कोशिश शुरू की है. इसी कड़ी में सरकार ने कोचिंग संस्थानों के लिए नई गाइडलाइन प्रोपोज की है. इस गाइडलाइन के अनुसार अब कोचिंग संस्थान छोटी उम्र से बच्चों का दाखिला नहीं ले पाएंगे. साथ ही फीस नियंत्रण और मेंटल हेल्थ को भी प्राथमिकता दी गई है. आइए जानते हैं कि इस पर शिक्षा जगत से जुड़े लोग और पेरेंट्स एसोसिएशन क्या कहती है.
दिल्ली के एल्कॉन इंटरनेशनल स्कूल के वरिष्ठ शिक्षक राजीव झा काफी लंबे समय से शिक्षा जगत से जुड़े हैं. वो कहते हैं कि सरकार के इस निर्णय की सराहना करनी चाहिए कि उन्होंने कोचिंग सेंटर्स पर लगाम लगाने की कोशिश की. अब जब बच्चे मेच्याोर हो जाएंगे, अपना डिसिजन लेने लगेंगे, उन्हें क्या बनना है क्या नहीं, ये जानकर ही कोचिंग चुनेंगे तो ठीक रहेगा. राजीव झा आगे कहते हैं कि लेकिन मैं ये जरूर कहूंगा कि सरकार ने इसके लिए काफी देर कर दी है. कोचिंग मंडी अब जड़े काफी गहरी कर चुका है. आज के समय में ये हजारों करोड़ की इंडस्ट्री बन गई है.
आने वाले समय में वो इन गाइडलाइंस का भी कोई विकल्प निकाल लेंगे फिर भी जिस तरह वो पहले फ्री हैंड पढ़ा रहे थे, उस पर कुछ तो अंकुश लगेगा कोचिंग में जिस तरह बच्चों को ‘रैंकर’ और ‘बैंकर’ की कैटेगरी में बांटकर पढ़ाया जा रहा था, वो भेदभाव करने वाला रवैया अब बदलेगा. रैंकर यानी टॉपर पर ध्यान देते थे और बैंकर से सिर्फ पैसा बनता था, अब अच्छा कर दिया कि जितने दिन वो बच्चे पढ़ेंगे सिर्फ वही फीस ली जाएगी बाकी फीस उन्हें रिफंड हो जाएगी. राजीव झा कहते हैं कि सरकुछ बिंदु देने चाहिए थे.
शशि प्रकाश सिंह करीब कोटा समेत अन्य जगहों पर 20 साल से कोचिंग इडस्ट्री से शिक्षक के तौर पर जुड़े हैं. वो कहते हैं कि गाइडलाइंस तो बहुत ही अच्छे हैं लेकिन अगर इनका अक्षरश: और सख्ती से सभी पालन करें तभी प्रभावी होंगे. नियमों को तोड़-मरोड़कर लागू करने से कोई फायदा नहीं होने वाला है.
दिल्ली पेरेंट्स एसोसिएशन की अध्यक्ष अपराजिता गौतम कहती हैं कि मैंने देखा है छोटी उम्र के बच्चों के जो पेरेंट्स एक बार इन कोचिंग सेंटर्स के जाल में फंस जाते हैं, उनका बच्चे के बड़े होते तक यहां सब लुट जाता है. इस गाइडलाइंस से भी कोचिंग सेंटर्स का पैटर्न बहुत ज्यादा नहीं बदलने वाला, बस ये इंडस्ट्री अपना मोड चेंज कर देगी. मसलन, गाइडलाइन में कहा गया है कि वो मेंटल हेल्थ काउंसिलर को जरूर रखें तो कोचिंग ये सुविधा भी जरूर रखेंगे, पहले से मजबूत भी कर सकते हैं लेकिन साथ ही इसका चार्ज भी अभिभावक से लेने लगेंगे.