Devara Part 1 Review: जूनियर के दीवानों का दंड बनी ‘देवरा’, ‘बाहुबली’ बनाने के चक्कर कोरटाला ने बना दी ‘साहो’

Devara Part 1 Review
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तेलुगु सिनेमा में भगवानों के किरदार करके दुनिया भर में लोकप्रिय हुए अभिनेता नंदमूरि तारक रामाराव (एनटीआर) के बेटे जूनियर एनटीआर इक्कीसवीं सदी में ‘देवरा’ बनने की कोशिश में हैं। छह साल हुए, उन्हें बड़े परदे पर कोई सोलो फिल्म किए हैं। बाल कलाकार के रूप में बनी ‘ब्रह्मर्षि विश्वामित्र’ और ‘रामायणम्’ के बाद कोई 23 साल पहले जूनियर एनटीआर ने एक डबल रोल वाली फिल्म ‘निन्नी चूडालनी’ से ही बतौर हीरो डेब्यू किया था। फिल्म ‘देवरा पार्ट वन’ में भी वह डबल रोल में हैं। चूंकि इसका पोस्टर ही इसकी मुनादी कर चुका है तो इसकी चर्चा करने में यहां कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। डबल रोल वाली ये कुल मिलाकर जूनियर एनटीआर की पांचवीं फिल्म है। बीच में एक फिल्म मे वह ट्रिपल रोल भी कर चुके हैं।

लेखक से निर्देशक बने कोरटाला शिवा की दो साल पहले आई चिरंजीवी और राम चरण अभिनीत फ्लॉप फिल्म ‘आचार्य’ के बाद ये अगली फिल्म है। फिल्म को लेकर तेलुगु सिनेमा में जूनियर एनटीआर के दीवाने उतावले रहे हैं। फिल्म की एडवांस बुकिंग भी उत्साहजनक ही रही है, लेकिन फिल्म का पहला शो यहां सुबह सुबह साढ़े आठ बजे देखने पहुंचे दर्शकों का उत्साह करीब तीन घंटे लंबी ये फिल्म देखने के बाद आखिर तक आते आते बुझता सा नजर आया। फिल्म की कहानी बहुत खास नहीं है। बंदरगाहों की तरफ जाने वाले पानी के जहाज समंदर के जिस रास्ते से गुजरते हैं, वहां तट पर स्थित एक पहाड़ पर बसे चार गांवों की ये कहानी है। हर गांव एक अलग कला में निपुण रहा है। पहले वह इलाके के राजा के रक्षा करते रहे। फिर अंग्रेजों के भागने के बाद जन्मी पीढ़ी के लोग समंदर से निकलने वाले जहाजों से तस्करी का माल निकालने लगे। ये कहानी इन समुद्री लुटेरों, इनके परिवारों और इन गांवों की आपसी सियासत की है।
पुलिस की मदद से चलने वाले अवैध हथियारों की तस्करी वाले एक गिरोह की मदद करते करते देवरा को एक दिन समझ आता है कि जिन हथियारों की तस्करी में वह मदद करता रहा, वे हथियार ही उसके गांव का सुख लूट रहे हैं। उसको अक्ल आती है। उसके साथियों को नहीं। इस विरोधी गुट का लीडर भैरा है। देवरा और भैरा की दुश्मन बढ़ती है। देवरा को मारने की योजना बनती है। सबको मारने के बाद एक दिन देवरा लापता हो जाता है। उसका बेटा वरा इंटरवल के बाद की कहानी आगे बढ़ाता है। झलक दिखाने भर को उसकी प्रेमिका थंगम भी है। कहानी आज के समय से शुरू होती जब क्रिकेट वर्ल्ड कप के दौरान शांति बनाए रखने के लिए पुलिस एक खास दस्ते को घोषित आतंकवादी को पकड़ने की मुहिम शुरू करती है।
फिल्म ‘देवरा पार्ट वन’ अपनी सीक्वल के लिए गुंजाइश छोड़कर खत्म होती है लेकिन जैसी ये 177 मिनट की फिल्म बनी है, उसे देखकर लगता नहीं कि इसे देखने वालों को इसके सीक्वल को देखने में बहुत कुछ दिलचस्पी बनी रहेगी। जैसे प्रभास को राजामौली के साथ काम करने के बाद दो तीन सुपर फ्लॉप फिल्मों का अभिशाप उतारना पड़ा, वैसा ही कुछ यहां जूनियर एनटीआर के साथ होता दिख रहा है। एक बार परदे पर नजर आने के बाद डबल रोल में होने के चलते फिल्म के तकरीबन हर फ्रेम में वह मौजूद हैं और उनका अपना ये ओवरडोज फिल्म पर बहुत भारी है। साउथ सिनेमा के के लिए जूनियर एनटीआर की कद काठी ठीक लगती होगी, लेकिन हिंदी सिनेमा के दर्शक ये फिल्म उनका करिश्मा देखने ही आए, जो फिल्म में कहीं इसके निर्देशक कोरटाला शिवा दिखा नहीं पाए।
फिल्म देखते समय दर्शक हर सीन के पहले ही बताते रहते हैं कि अब ये होने वाला है और फिल्म भी दर्शकों की इन टीका टिप्पणियों के साथ ही डूबती उतराती चलती है। सैफ अली खान का किरदार बहुत ही ज्यादा कमजोर लिखा गया है। विलेन जैसा कुछ उनके फिल्म मे कराया ही नहीं गया कि उनको कोई आतंक बने। ‘दुल्हन वही जो पिया मन भाये’ वाली रामेश्वरी को अरसे बाद बड़े परदे पर देखना अच्छा लगता है। मुरली शर्मा और अभिमन्यु सिंह अपने अपने खांचे वाले किरदार करते नजर आते हैं। प्रकाश राज को कोरटाला शिवा ने फिल्म का सूत्रधार बना दिया है। वह कहानी सुनाते चलते हैं। फिल्म आगे चलती जाती है। और हां, फिल्म में जान्हवी कपूर भी हैं। एक नहाने के सीन, एक गाने और दो तीन हंसी मजाक वाले सीन के लिए। उससे ज्यादा उनसे इस तरह की फिल्मों में किसी को कोई उम्मीद भी नहीं रही होगी। यहां ध्यान ये रखना है कि ये रोल जान्हवी के पास श्रद्धा कपूर, आलिया भट्ट और रश्मिका मंदाना के मन करने के बाद आया है।
फिल्म ‘देवरा पार्ट वन’ मात खाती है अपनी कहानी, अपनी पटकथा और अपने संवादों से। फिल्म की कहानी घिसी पिटी, पटकथा बहुत कमजोर और संवादों में बनावटीपन झलकता है। निर्देशक कोरटाला शिवा इस फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी हैं। न उनकी कहानी में नयापन है और न ही निर्देशन में। एस एस राजामौली से बुरी तरह प्रभावित दिखने वाले कोरटाला शिवा ने जूनियर एनटीआर को ‘बाहुबली’ बनाने की कोशिश करके ही बड़ी गलती कर दी है। शार्क की नकेल कसने वाले शॉट थोड़ा बहुत प्रभावित करते हैं। ये भारत में ही हो सकता है कंप्यूटर ग्राफिक्स वाले शॉट्स में परदे पर सीजीआई भी लिखना पड़ता है। कॉमेडी के एक दो सीन भी ठीकठाक हैं, लेकिन बाकी समय फिल्म बहुत बोर करती चलती है।
कोरटाला शिवा के अपने निर्देशन मे पूरी तरह चूक जाने का ही नतीजा है कि फिल्म ‘देवरा पार्ट वन’ में साबू सिरिल जैसे दिग्गज कला निर्देशक, ए श्रीकर प्रसाद जैसे काबिल संपादक, आर रत्नावेलु जैसे कल्पनाशील सिनेमैटोग्राफर और अनिरुद्ध रविचंदर जैसे लोकप्रिय संगीतकार सब मिलकर भी कोई ऐसा करिश्मा नहीं दिखा पाए, जिससे देखकर सिनेमाघरों में दर्शकों के मुंह से वाह निकल जाए। फिल्म ‘देवरा पार्ट वन’ कुछ कुछ ‘बाहुबली वन’ की तर्ज पर खत्म होती है और कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा जैसा सस्पेंस भी रचने की कोशिश करती हैं, लेकिन इसी फिल्म का वर्तमान बहुत ठीक नहीं है, सीक्वल का भविष्य तो अभी बहुत दूर की कौड़ी है।

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